हिन्दुस्तानी एकेडेमी में जन सूचना अधिकार का सम्मान

जनसूचना अधिकारी श्री इंद्रजीत विश्वकर्मा, कोषाध्यक्ष, हिन्दुस्तानी एकेडेमी,इलाहाबाद व मुख्य कोषाधिकारी, इलाहाबाद। आवास-स्ट्रेची रोड, सिविल लाइन्स, इलाहाबाद कार्यालय-१२ डी,कमलानेहरू मार्ग, इलाहाबाद
प्रथम अपीलीय अधिकारी श्री प्रदीप कुमार्, सचिव,हिन्दुस्तानी एकेडेमी, इलाहाबाद व अपर जिलाधिकारी(नगर्), इलाहाबाद। आवास-कलेक्ट्रेट, इलाहाबाद कार्यालय-१२डी, कमलानेहरू मार्ग, इलाहाबाद
दूरभाष कार्यालय - (०५३२)- २४०७६२५

बुधवार, 26 मई 2010

नलविलास-परिशीलन (Nal Vilas Parishilan : Dr. Arun Kumar Tripathi)

नलविलास-परिशीलन
लेखक : डॉ० अरुण कुमार त्रिपाठी
संस्करण : प्रथम २००९ ई०
मूल्य : २२५/- रुपये दो सौ पच्चीस मात्र
प्रकाशक : सचिव, हिन्दुस्तानी एकेडेमी, इलाहाबाद।
मुद्रक : एकेडेमी प्रेस, दारागंज, इलाहाबाद।
पृष्ठ : ३६२
आकार एवं आवरण : डिमाई सजिल्द

प्रकाशकीय

लौकिक संस्कृत साहित्य में रामायण और महाभारत दो ऐसे उपजीव्य काव्य हैं जिन पर परवर्ती संस्कृत व हिन्दी साहित्य आश्रित रहा है। कवियों ने अपनी कृति के लिए कथानक का चयन बहुधा रामायण व महाभारत के ही विविध प्रसंगों से किया है। यह जरूर है कि कवि की प्रतिभा व मेधा ने उन कथानकों में अपने हिसाब से रस, छन्द, अलंकार, गुण, वृत्ति व रीति का प्रयोग करके उसे अत्यधिक आकर्षक व रुचिकर बना दिया। जैन महाकवि श्री रामचन्द्र सूरि ने महाभारत की नल दमयन्ती की कथा को उपजीव्य बनाकर नलविलास की रचना बारहवीं शताब्दी ई० में की। यद्यपि नलविलास की रचना पर रायण के नल चरित्र वर्णन का भी प्रभाव परिलक्षित होता है। अनेक जैन विद्वानों की भांति श्री रामचन्द्र सूरि की रचनाओं से मां भारती का भण्डार समृद्ध हुआ है। कवि रामचन्द्र सूरि नाटकों के प्राणभूत रसों को चरमोत्कर्ष तक पहुंचाने वाले नाटककार हैं। उनके नाटक की शैली सरल, सुबोध एवं रसवती हैं। रामचन्द्र सूरि के बारे में कहा जाता है कि वे शताधिक ग्रन्थों के रचयिता थे। वे प्रतिभाशाली कवि व नाटककार के साथ-साथ नाट्‌य शास्त्र के भी उद्‌भट आचार्य थे। ये संस्कृत काव्यशास्त्र के प्रसिद्ध जैन आचार्य हेमचन्द्र के शिष्यों में अग्रणी थे। श्री सूरि जयसिंह सिद्धराज एवं उनके उत्तराधिकारी कुमारपाल की सभा के विद्वानों में अन्यतम थे।

हिन्दुस्तानी एकेडेमी ने विगत वर्षों में ऐसे ग्रन्थों के प्रकाशन व पुनर्प्रकाशन का संकल्प लिया है जिनसे सारस्वत भण्डार की अभिवृद्धि होने के साथ-साथ भारतीय संस्कृति का संरक्षण एवं संवर्धन हो। नल विलास परिशीलन ऐसे ही प्रकाशनों की एक कड़ी है। डॉ० अरुण कुमार त्रिपाठी ने अपनी प्रतिभा एवं खोजी वृत्ति के द्वारा नलविलास के विभिन्न पक्षों एवं प्रसंगों का विद्वत्तापूर्ण विवेचन किया है, जिससे ग्रन्थ अत्यन्त आकर्षक, सुरुचिपूर्ण एवं सरस बन गया है। मेरा विश्वास है कि 'नलविलास-परिशीलन' संस्कृत व हिन्दी साहित्य की कोश वृद्धि करने के साथ-साथ लक्षण ग्रन्थों जैसे काव्यशास्त्र व नाट्‌यशास्त्र के विभिन्न लक्षणों को व्याखयायित करेगा। आशा है कि हिन्दुस्तानी एकेडेमी के गौरवशाली प्रकाशनों की श्रृंखला में प्रस्तुत पुस्तक 'नलविलास - परिशीलन' भी हिन्दी व संस्कृत के विद्वत्समाज में समान रूप से समादृत होगा।

दिनांक ५ जनवरी २००९
डॉ० एस०के० पाण्डेय
अपर जिलाधिकारी (वित्त एवं राजस्व)
इलाहाबाद एवं
सचिव
हिन्दुस्तानी एकेडेमी, इलाहाबाद

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