पुस्तक-लोकार्पण समारोह
हिन्दुस्तानी एकेडेमी के तत्वावधान में २८ अप्रैल २०१० दिन बुधवार अपराह्न 5:00 बजे एकेडेमी के सभागार में पुस्तक-लोकार्पण समारोह का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शुभारम्भ मुख्य अतिथ श्री विभूति नारायण राय, अध्यक्ष श्री दूधनाथ सिंह, श्री दिनेश कुमार शुक्ल, श्री शीतला प्रसाद श्रीवास्तव जी ने दीप प्रज्ज्वलित करके एवं सरस्वती जी के चित्र पर माल्यार्पण के साथ हुआ। प्रकाश त्रिपाठी ने कार्यक्रम के प्रारम्भ में अतिथियों का स्वागत किया। हिन्दुस्तानी एकेडेमी की सद्यः प्रकाशित पुस्तकों चिद्यात्रा (कविता संकलन) - शीतला प्रसाद श्रीवास्तव, जगदीश गुप्त : व्यक्ति और काव्य- डॉ० प्रकाश त्रिपाठी, रहीम की काव्य-भाषा - डॉ० प्रकाश त्रिपाठी, हिन्दी व्यंग्य और शरद जोशी - डॉ० कमलेश सिंह का लोकार्पण मुख्य अतिथ वी०एन० राय, दूधनाथ सिंह और दिनेश कुमार शुक्ल ने किया। चारों पुस्तकों पर चर्चा करते हुए मुश्ताक अली ने कहा कि यह विमोचन समारोह अनस्टेबलिश्ड लोगों का एक उपक्रम है। इन चारों किताबों में सर्जनात्मक किताब है चिद्यात्रा। इसमें ९४ कविताएं संकलित हैं। किन्तु कवि शीतला प्रसाद श्रीवास्तव जी स्वयं को कवि नहीं मानते। उन्होंने अपनी पहली कविता में लिखा है ''जी नहीं मैं कवि नहीं हूं पर कविता रचता हूं।'' उन्होंने अपनी कविताओं में आम आदमी की बात कही है। आज की व्यवस्था में आम आदमी कितना बेचारा हैं। इन सारी कविताओं में कवि एक मूल्य के लिए जीता है। रहीम की काव्यभाषा, जगदीश गुप्तः व्यक्ति और काव्य एवं हिन्दी व्यंग्य और शरद जोशी पुस्तक पर भी उन्होंने चर्चा की।
दिनेश कुमार शुक्ल जी ने चर्चा करते हुए कहा कि आने वाले समय में साहित्य किनारे किया जा रहा है। साहित्य में कटुता का वातावरण है। तटस्थ मूल्यांकन नहीं होता है। साहित्य की दुनिया में जो हाशिये में जा रहा उसके लिए प्रयास करें। इन पुस्तकों का प्रकाशन इसका छोटा सा प्रयास है। कवि शीतला प्रसाद जी सहज स्वभाव के हैं। उनकी कविताओं में सहजता, सरलता है। साहित्य का मंच व्यक्तिगत वैमनस्य निकालने का मंच नहीं होना चाहिए। कविता से ही संवेदना बनती है। जिस दिन आप संवेदनहीन हो जायेंगे ज्ञान भी आपसे दूर चला जायेगा। इसलिए कटुताओं को कम करें। ज्ञान व संवेदना को मिलाने की बात करें।
कार्यक्रम में कवि शीतला प्रसाद श्रीवास्तव जी ने कहा ''मैं इस क्षेत्र में नया हूं। इसलिए स्वयं को कवि नही मानता। कविता लिखी नहीं जाती, कविता का प्रादुर्भाव होता है।'' उन्होंने अपनी कुछ कविताओं को पढ़कर सुनाया।
कार्यक्रम के मुखय अतिथि विभूति नारायण राय ने कहा कि हिन्दी में बहुत दिन तक एक खास मानसिकता में साहित्य लिखा गया। साहित्य में कुछ लोगों का प्रवेश था। पत्रकार, अध्यापक ही साहित्यकार होता था। दूसरे पेशे का यदि कोई साहित्य में आता तो इन्हें अच्छा नहीं लगता। पुलिस जैसी नौकरी से तो खासकर। लेकिन अब समय बदला है। दूसरे पेशे से भी लोग आये उन्होंने जितना लिया उससे ज्यादा दिया। नये-नये शब्द तथा भाषा के नये अनुभव से नयी भाषा जुड़ी। पुलिस महकमें में तो जानवर बनने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। शीतलाप्रसाद जी के भीतर यदि मनुष्य बचा है तो वह उनके साहित्य से जुड ने के कारण, जो उनकी कविताओं में दिखाई पड ता है। नये साहित्य प्रेमियों के प्रति भी सहृदय होना पड़ेगा। हिन्दी व्यंग्य पर अगर कोई भी काम करेगा तो उसे हिन्दी व्यंग्य और शरद जोशी किताब की आवश्यकता पड़ेगी। नये लोगों से ज्यादा अपेक्षा नहीं करनी चाहिए।
अध्यक्ष पद से दूधनाथ जी ने कहा कि हिन्दुस्तानी एकेडेमी को अपने प्रकाशन की परम्परा और गौरव को बनाये रखना चाहिए। हिन्दुस्तानी एकेडेमी के प्रकाशनों का एक इतिहास रहा है। यहां से बहुत अच्छी-अच्छी किताबों का प्रकाशन हुआ है। उन्होंने चिद्यात्रा पर चर्चा करते हुए कहा कि कविता में एक बिम्बात्मक अलंकृति होती है। विवरण भी हो तो बिम्ब होना चाहिए।जो कि रघुवीर सहाय जी की कविताओं में पाया जाता है। यदि बिम्बात्मक अलंकृति न हो तो वह विवरण जैसी लगने लगती है।
कार्यक्रम के अन्त में एकेडेमी के कोषाध्यक्ष सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी जी ने धन्यवाद ज्ञापित करते हुए सभी उपस्थित साहित्य प्रेमियों का आवाहन करते हुए कहा कि हिन्दुस्तानी एकेडेमी की समृद्ध परम्परा को आगे बढ़ाने के लिए सबका दायित्व है कि वे हिन्दी और उर्दू भाषा और साहित्य के विकास हेतु अपना सक्रिय योगदान दें।
सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
कोषाध्यक्ष
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