हिंदुस्तानी एकेडेमी की अनुपम भेंट
‘केदार शोध पीठ न्यास’ द्वारा प्रतिवर्ष समकालीन हिंदी कवियों में से ऐसे कवि को चयनित कर केदार सम्मान प्रदान किया जाता है जिन्होंने अपनी कविता से केदार नाथ अग्रवाल की जातीय काव्य परंपरा, सौंदर्य, प्रेम और संघर्ष की चेतना को आगे बढ़ाया है। वर्ष 1996 से प्रारम्भ किए गये इस पुरस्कार से अबतक चौदह समकालीन रचनाकारों को सम्मानित किया जा चुका है। हिंदुस्तानी एकेडेमी ने गुणवत्तायुक्त साहित्य के प्रकाशन की अपनी समृद्ध परंपरा का निर्वाह करते हुए इन चौदह पुरस्कृत कवियों की प्रतिनिधि कविताओं का संकलन प्रकाशित किया है। इन कवियों का विवरण निम्नवत है:
वर्ष | कवि | पुरस्कृत कृति |
1996 | नासिर अहमद सिकंदर | जो कुछ भी घट रहा है दुनिया में |
1997 | एकांत श्रीवास्तव | अन्न हैं शब्द मेरे |
1998 | कुमार अंबुज | क्रूरता और अनंतिम |
1999 | विनोद दास | वर्णमाला से बाहर |
2000 | गगन गिल | यह आकांक्षा समय नहीं |
2001 | हरीश चंद्र पांडे | एक बुरूँश कहीं खिलता है |
2002 | अनिल कुमार सिंह | पहला उपदेश |
2003 | हेमंत कुकरेती | चाँद पर नाव |
2004 | नीलेश रघुवंशी | पानी का स्वाद |
2005 | आशुतोश दुबे | असंभव सारांश |
2006 | बद्री नारायण | शब्दपदीयम् |
2007 | अनामिका | खुरदुरी हथेलियाँ |
2008 | दिनेश कुमार शुक्ल | ललमुनिया की दुनिया |
2009 | अष्टभुजा शुक्ल | दुःस्वप्न भी आते हैं |
हिंदुस्तानी एकेडेमी के सचिव श्री प्रदीप कुमार ने अपने प्रकाशकीय आलेख में इस पुस्तक की उपादेयता पर प्रकाश डाला है। (बड़ा करके पढ़ने के लिए नीचे के आलेख पर क्लिक करें)
(पिछला आवरण पृष्ठ- सम्पादक त्रयी के परिचय के साथ)
आशा है यह संकलन काव्य साहित्य के पारखी आलोचकों, अध्येताओं, विद्यार्थियों व सामान्य पाठकों, के लिए अत्यंत उपयोगी होगा।
इतनी शानदार जानकारी के लिए शुक्रिया ....हिंदी साहित्य में (पीएच. डी.)तक की शिक्षा ग्रहण करने के कारण इन कवियों से परिचय था आज इस ब्लॉग पर यह जानकारी मन अति प्रसन्न हुआ,..शुक्रिया
जवाब देंहटाएंएक कविता दिनेश कुमार शुक्ल की इसी पुस्तक से-
जवाब देंहटाएंललमुनिया की दुनिया
उलझी-पुलझी झाड़ी लाखों साल पुरानी
उस पर बैठी ललमुनियाँ थी बड़ी सयानी
इस टहनी से उस टहनी पर फुदक रही थी
टहनी में काँटे काँटों में टीस भरी थी
लगती थी सूखी झाड़ी पर हरी-भरी थी
फूल खिले थे फूलों में मुरझाया था मन
तौला मैंने फिर फिर तौला अपने मन को
लिखा-मिटाया लिखा-मिटाया फिर जीवन को
खुद को ठोक बजाया पत्थर पे दे मारा
हारी बाजी जीता, जीती बाजी हारा
साधा फिर-फिर माया ठगिनी के ठनगन को
अनदेखे ही आँखें दे दीं इनको उनको
फिर भी खालिस बचा ले गया मैं बचपन को
झाड़ी में ललमुनियाँ
ललमुनियाँ में दुनिया
दुनिया में जीवन
जीवन में हँसता बचपन
बचपन की आँखों के हँसते नील गगन में
देखा चली जा रही थी उड़ती ललमुनियाँ
टूटी फूटी भाषा अगड़म-बगड़म बानी
ये दुनिया ललमुनियाँ की ही कारस्तानी
कौआ-कोयल तोता-मैना की शैतानी
झूठमूठ की भरो हुँकारी झूठमूठ की कथा-कहानी
बधाई.
जवाब देंहटाएंबढिया जानकारी के लिए आभार। विजेताओं को बधाई॥
जवाब देंहटाएंसभी कवियों को हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंआपका कार्य साहनीय है........जानकारी उपयोगी है
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