हिन्दी रंगकर्म के अमृतपुत्र : डॉ० सत्यव्रत सिन्हा
डॉ० अनुपम आनन्द
मूल्य १८०.०० सजिल्द
पृष्ठ ३०७
प्रकाशन वर्ष २००९
प्रकाशक एवं वितरक : हिन्दुस्तानी एकेडेमी, इलाहाबाद
प्रकाशकीय
रंगकर्म अपने आप में बहुआयामी विधा है। विविध कलाओं का खूबसूरत समुच्चय! और उसी अनुपात में व्यावहारिक स्तर पर उनका संयोजन-प्रदर्शन। कोई भी कला मूलत: जिस आस्वादकर्ता को संबोधित होती है, उसकी इतनी प्रत्यक्ष मौजूदगी और स्वीकृति किसी भी अन्य कला-विधा में नहीं होती। इसीलिए एक सच्चे रंगकर्मी से अपेक्षाकृत अधिक प्रतिबद्धता और गतिशीलता की भी आशा की जाती है। डॉ० सत्यव्रत सिन्हा ऐसे ही कुशल, संवेदनशील और सिद्धहस्त कलाकार थे। अभिनय की प्राथमिक सीढ़ी से चलकर वह कैसे क्रमश: नये-नये सोपान चढ़ते गये होंगे, इसका साक्षात्कार करना सचमुच एक सुखद और स्पृहणीय अनुभव हो सकता है। अन्तत: एक बड़े रंग निर्देशक के रूप में उन्होंने एक उचाई हासिल की, जिनके खाते में तरह-तरह के रंग-प्रयोग दर्ज हैं। इलाहाबाद जैसी सांस्कृतिक नगरी उनके निर्माण-विकास की साक्षी रही है और उनका कार्यस्थल भी। ‘प्रयाग रंगमंच’ जैसी संस्था के संस्थापक के रूप में उनका नाम शुमार किया जाता है। बनारस के बाद शायद इलाहाबाद ही वह नगरी है जहां हिन्दी रंगमंच ने कई महत्वपूर्ण मुकाम हासिल किये। खास करके आधुनिक रंगमंच की पाश्चात्य परम्पराओं का अवगाहन इलाहाबाद में ही सर्वाधिक संभव हो सका। डॉ० सत्यव्रत सिन्हा उन थोड़े-से शख्सियतों में हैं, जिन्हें इसका श्रेय दिया जा सकता है।
ऐसे अनूठे रंगकर्मी के प्राय: समग्र अवदान को एक पुस्तक के रूप में प्रस्तुत करते हुए हमें अपार हर्ष का अनुभव हो रहा है। यह महत् कार्य उनके सुपुत्र डॉ० अनुपम आनन्द के लम्बे और समर्पित अध्यवसाय से ही सम्भव हो सका है। अनुपम जी स्वयं एक अच्छे रंगकर्मी और अध्येता हैं। डॉ० सिन्हा की जीवन-यात्रा से लेकर उनके लिखित अवदान और उनसे लिये गये साक्षात्कारों का उन्होंने बड़ी खूबसूरती से संयोजन किया है। जिस आत्मीयता के साथ उन्होंने इस महान रंगकर्मी के जीवन व कर्मवृत्तों को प्रस्तुत किया है, उसके लिए हम उनके ऋणी हैं। आशा है, पाठक और शोधार्थी इस महत्वपूर्ण कृति का भरपूर लाभ उठायेंगे।
२८ सितम्बर २००९
विजयादशमी
डॉ० एस०के० पाण्डेय
सचिव,
हिन्दुस्तानी एकेडेमी
पुस्तक चर्चा का आभार ।
जवाब देंहटाएंखूबसूरत पुस्तक-परिचर्चा...बधाई.
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