प्रकाशकीय
अंग्रेजी शब्द ‘ब्लॉग’ वेब-लॉग का संक्षिप्त रूप है जो अमेरिका में १९९७ ई. के दौरान अन्तर्जाल (इण्टरनेट) पर प्रचलन में आया। प्रारम्भ में कुछ ऑनलाइन पत्रिकाओं के ‘लॉग’ प्रकाशित किये जाते थे, जिनमें वेबसाइट के विभिन्न हिस्सों में प्रकाशित विविध सामग्रियों के लिंक दिये गये होते थे तथा साथ में इनके लेखकों की संक्षिप्त टिप्पणियाँ होती थीं। कालान्तर में इन्हें ही ‘ब्लॉग’ कहा जाने लगा और इनके लेखक ‘ब्लॉगर’ कहलाए।
ब्लॉग को विश्व के आम लोगों में भारी लोकप्रियता उस समय मिली जब अफगानिस्तान पर अमेरिकी हमले के दौरान एक अमेरिकी सैनिक ने अपने युद्ध सम्बन्धी अनुभव को ब्लॉग के माध्यम से दैनिक आधार पर प्रकाशित करना प्रारम्भ किया। उस समय एण्ड्र्यू सुलीवान के ब्लॉग पृष्ठ को आठ लाख से अधिक लोगों ने खोला व पढ़ा। पाठकों की इतनी बड़ी संख्या प्रिन्ट माध्यम के अनेक प्रतिष्ठित प्रकाशनों से आगे निकल गयी थी। देखते ही देखते १९९७-९८ के महज दर्जन भर ब्लॉगों से प्रारम्भ होने वाला सहज अभिव्यक्ति का यह नया माध्यम केवल चार वर्षों में दस लाख का आँकड़ा पार कर गया।
शीघ्र ही विश्व की प्रत्येक भाषा में सभी कल्पनीय विषयों और अकल्पनीय मुद्दों पर भी ब्लॉग लिखे जाने लगे। हिन्दी भाषा का प्रथम ब्लॉग नौ दो ग्यारह (९-२-११) प्रारम्भ करने का श्रेय बंगलुरू निवासी आलोक कुमार को जाता है, जिन्होंने पहली बार ब्लॉग को ‘चिठ्ठा’ नाम दिया और इस प्रकार वे ‘आदि-चिठ्ठाकार’ कहलाए। इस चिठ्ठे में उन्होंने कम्प्यूटर जगत के तकनीकी और अपने अन्य व्यक्तिगत अनुभवों को नियमित रूप से प्रकाशित किया। इलाहाबाद की छात्रा रह चुकी डॉ. पूर्णिमा बर्मन द्वारा हिन्दी में संचालित साप्ताहिक अन्तर्जाल पत्रिका ‘अभिव्यक्ति’ में रवि प्रकाश श्रीवास्तव (रवि रतलामी) ने एक आलेख प्रकाशित किया जिसका शीर्षक था- अभिव्यक्ति का नया माध्यम: ब्लॉग। इस प्रकार के प्रयासों से हिन्दी ब्लॉग लेखन के कार्य में शनैः शनैः प्रगति होने लगी। प्रारम्भिक चिठ्ठाकारों में रवि रतलामी, देबाशीष, जीतेन्द्र चौधरी, अतुल अरोरा, अनूप शुक्ल, पंकज नरूला इत्यादि प्रमुख रहे।
अप्रैल २००३ में प्रारम्भ होने के बाद हिन्दी भाषा के चिठ्ठों की संख्या में वृद्धि की गति अपेक्षाकृत धीमी रही है। करीब छः साल बाद भी अभी कुल हिन्दी चिठ्ठों की संख्या दस हजार के आसपास ही है। इनमें भी नियमित रूप से सक्रिय रहने वाले हिन्दी चिठ्ठे ढाई हजार के आसपास ही हैं। वर्तमान में यह माध्यम तेजी से बढ़ रहा है। प्रतिदिन औसतन पच्चीस-तीस नये ब्लॉग हिन्दी ब्लॉग जगत से जुड़ रहे हैं। ब्लॉगर और वर्डप्रेस जैसे जालघर मुफ़्त में ब्लॉग लिखने और प्रकाशित करने की सुविधा देते हैं। ब्लॉग लेखक को कम्प्यूटर तकनीक का भी प्रारम्भिक ज्ञान ही पर्याप्त होता है।
ब्लॉगों की लोकप्रियता और अन्तर्जाल से जुड़े प्रबुद्ध वर्ग के लिए इसकी सहजता और सरलता ने प्रिन्ट माध्यम में भी इनकी चर्चा को अपरिहार्य बना दिया है। प्रायः सभी अखबारों और पत्र पत्रिकाओं द्वारा हिन्दी ब्लॉग जगत में प्रकाशित होने वाली रोचक और ज्ञान बर्द्धक जानकारी को अपने पृष्ठों में प्रमुख स्थान दिया जा रहा है। अनेक कवि, लेखक, पत्रकार, स्तम्भकार, वैज्ञानिक, समाजसेवी और अन्य प्रबुद्ध पेशों से जुड़े लोग अपनी बात रखने के लिए इस माध्यम की ओर झुक रहे हैं। इस माध्यम से ज्ञान-विज्ञान, संगीत, कला, संस्कृति, राजनीति, व्यापार, इतिहास, परिवार व समाज आदि अनेकानेक विषयों पर विचारों का आदान-प्रदान किया जा रहा है। ऐसे में पारम्परिक साहित्य के दृष्टिकोण से कुछ लोग ब्लॉग पर प्रकाशित सामग्री को साहित्य से इतर श्रेणी में रखने का विचार रख रहे हैं।
आचार्य मम्मट ने अपनी कालजयी कृति ‘काव्यप्रकाश’ के प्रथम उल्लास (खण्ड) में साहित्य के प्रयोजन की व्याख्या करते हुए बताया है कि साहित्य सृजन का उद्देश्य यश की प्राप्ति, अर्थोपार्जन, मानव व्यवहार का ज्ञान एवम् अशुभ का शमन करना है। यह कार्य पत्नी के समान हितैषी और सद्प्रेरणा देने वाला होता है। इस दृष्टिकोण से देखा जाय तो ब्लॉग पर प्रकाशित अधिकांश सामग्री साहित्य की श्रेणी मॆं रखी जा सकती है। गुणवत्ता की दृष्टि से अच्छा और खराब कोटि का साहित्य इलेक्ट्रॉनिक और प्रिन्ट दोनो माध्यमों में समान रूप से पाया जाता है। ब्लॉग के माध्यम में चूँकि किसी प्रकार की मात्रात्मक सीमा या सम्पादकीय कैंची क्रियाशील नहीं है कदाचित् इसलिए इसमें गुणवत्तायुक्त सामग्री का अनुपात थोड़ा कम हो सकता है। किन्तु इसका दूसरा पहलू यह है कि इस माध्यम में ब्लॉग लेखक को अपने विचार प्रकट करने की जो असीम और अनमोल स्वतन्त्रता मिली हुई है उससे उपजे साहित्य में एक अलग तरह की निर्दोष यायावरी और नैसर्गिक पारदर्शिता भी आ जाती है। मुक्त बाजार के नियम तो अपनी जगह हैं ही। यहाँ आना बेशक आसान है लेकिन ब्लॉग मंच पर सक्रिय बने रहना और निरन्तर आगे बढ़ते रहना उतना ही मुश्किल है। यहाँ वही जम पाएगा जिसमें दम होगा।
हिन्दुस्तानी एकेडेमी के प्रमुख उद्देश्यों में हिन्दी भाषा और साहित्य के विकास के विविध सोपानों पर कदम मिलाकर चलते हुए इस अनुष्ठान में सक्रिय प्रतिभाग करना है। इसकी सिद्धि के लिए एक ओर जहाँ मूर्धन्य विद्वानों और मनीषियों की शोधपरक और कालजयी कृतियों को प्रकाशित कर प्रबुद्ध विद्यार्थियों और अध्येताओं को उत्कृष्ट विषय सामग्री उपलब्ध करायी जा रही है तो दूसरी ओर प्रतिभाशाली उदीयमान लेखकों और साहित्यकारों की उर्वर विचारभूमि से पैदा होने वाली नवीन रचनाओं को स्थान देकर उन्हें आम पाठक वर्ग में प्रतिष्ठित करने का प्रयास भी किया जाता है, ताकि वे बदलते युग के साथ तादात्म्य बिठाते हुए परम्परा और आधुनिकता का उत्कृष्ट सम्मिश्रण प्रस्तुत कर सकें। श्री सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी के ब्लॉग लेखों के संकलन का यह पुस्तकीय प्रकाशन इस उद्देश्य की कसौटी पर पूर्णतः खरा उतरता है।
पुस्तक: | सत्यार्थमित्र (ब्लॉगपोस्ट संग्रह) |
लेखक: | सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी |
प्रकाशक: | हिन्दुस्तानी एकेडेमी, इलाहाबाद |
पृष्ठ सं. : | २८८ |
मूल्य: | रु. १९५/- मात्र |
सरकारी उत्तरदायित्व के पद पर रहते हुए श्री त्रिपाठी ने व्यक्तिगत रूप में अपने आस-पास की दुनिया से संवेदना का जो रिश्ता कायम कर रखा है वह इनकी रचनाओं में स्पष्ट झलकता है। “यह सरकारी ‘असरकारी’ क्यों नहीं है?” नामक पोस्ट में इनकी बेचैनी साफ झलकती है। बुजुर्ग पेंशनभोगियों की हालत बयान करती इनकी ग़ज़ल “हम हैं जिन्दा ये बताने का वक्त आया है” मन में सिहरन पैदा कर देती है। सरकारी नियम-कायदों के अनुपालन में कैसी विचित्र स्थिति उत्पन्न हो सकती है इसका एक रोचक किस्सा “तिल ने जो दर्द दिया” में पढ़ने को मिलेगा। पारिवारिक और सामाजिक मुद्दों पर सिद्धार्थ जी की लेखनी बेजोड़ चलती है। “उफ़ ये मध्यम वर्ग”, “प्रकृति ने औरतों को क्या कम कष्ट दिए हैं?” और “लो, मैं आ गया सिर मुड़ाकर…” जैसे लेख इनकी प्रगतिशील सोच और रुढियों-आडम्बरों के विरुद्ध निर्भीक लेखन का उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। कम्प्यूटर कीऔर इन्टरनेट की दुनिया में गोते लगा रहे एक ब्लॉगर के व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामाजिक जीवन में क्या परिवर्तन आ जाते हैं और उसे कैसी परेशानियाँ उठानी पड़ती हैं इसकी झलक भी लेखक ने “समय कम पड़ने लगा है”, “ब्लॉगरी ने जिन्दगी बदल दी” जैसे लेखों में बखूबी दिखायी है। “किताबों की खुसर-फुसर” सुनकर उसे लिपिबद्ध कर देना एक विलक्षण प्रतिभा की ओर इशारा करता है। ‘पुराण चर्चा’ के माध्यम से श्री त्रिपाठी ने हमारे आदि ग्रन्थों में निहित अनेक रोचक और उपयोगी जानकारी खोजकर प्रस्तुत की है। ‘धुन्धकारी’ की कथा व ‘ढपोर शंख’ का आख्यान विशेष रोचक बन पड़ा है। कदाचित् इसीलिए वर्तमान ब्लॉगजगत के शीर्ष पुरुष ज्ञानदत्त पाण्डेय ने शुरू में ही भविष्यवाणी कर दी थी कि ‘सिद्धार्थ जी में उत्कृष्टतम ब्लॉगर बनने का पूरा रॉ-मटीरियल है।’
इस पुस्तक में जो आलेख सम्मिलित किये गये हैं वे अप्रैल २००८ से मार्च २००९ के बीच इनके नियमित ब्लॉग सत्यार्थमित्र पर प्रकाशित हुए हैं। सभी आलेख अत्यन्त रोचक, और भावपूर्ण शैली में लिखे गये हैं। गम्भीर और संवेदनशील विषय भी कहीं बोझिल नहीं हो पाये हैं। भाषा का प्रवाह और लालित्य पाठक को आद्योपान्त बाँधे रखता है। इन लेखों में जिस दुनिया की बात की गयी है वह हमारे आस-पास की सुपरिचित घरेलू दुनिया है जिसमें हम नित्य-प्रति साँस ले रहे हैं। यह पुस्तक उन साहित्य प्रेमियों के लिए विशेष उपयोगी और लाभप्रद है जो अभी इन्टरनेट की दुनिया से पूरी तरह नहीं जुड़ सके हैं। आशा है कि हिन्दुस्तानी एकेडेमी के गौरवशाली प्रकाशनों की सृंखला में इस पुस्तक का सुधी पाठकों और साहित्यप्रेमियों द्वारा हृदय से स्वागत किया जाएगा।
हम इस पुस्तक के लेखक श्री सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी को इस अनुपम कृति के प्रकाशन के अवसर पर साधुवाद देते हैं और उनके सफल और उज्ज्वल लेखकीय भविष्य की कामना करते हैं।
डॉ. एस. के. पाण्डेय
सचिव, हिन्दुस्तानी एकेडेमी
१२ डी, कमला नेहरू मार्ग, इलाहाबाद।
हिन्दुस्तानी एकेडेमी
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हमारी भी बधाई -पुस्तक ब्लॉग विधा में निश्चय ही पथ प्रदर्शक /ट्रेंड सेटर है -
जवाब देंहटाएंबधाई हो हमारी भी बधाई हो!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई!
जवाब देंहटाएंसिद्धार्थजी को बधाई
जवाब देंहटाएंसिद्धार्थजी को बधाई !
जवाब देंहटाएंसिद्धार्थजी को बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंमन मुदित हुआ जा रहा है । शुरुआत बेहतर हो गयी है । अरविन्द जी ने ठीक कहा - ट्रेंड सेटर है यह पुस्तक । आभार ।
जवाब देंहटाएंहां यह पुस्तक आशा से ज्यादा अच्छी निकली।
जवाब देंहटाएं"आचार्य मम्मट ने अपनी कालजयी कृति ‘काव्यप्रकाश’ के प्रथम उल्लास (खण्ड) में साहित्य के प्रयोजन की व्याख्या ....
जवाब देंहटाएंकाश! कि उस समय भी ब्लाग होता>>>:)
पुस्तक के प्रकाशन के लिए सिद्धार्थजी को बधाई॥
बधाई ! बहुत-बहुत बधाई !
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