हरि चरित्र अवधी भाषा का श्रीकृष्ण सम्बन्धी काव्य है। परम वैष्णव लालचदास कृत इस ग्रन्थ का रचनाकाल संवत् १५८७ बताया जाता है। हरि चरित्र में हरि गुनगान है- श्रीकृष्ण की अनेक लीलाओं का मनोहर वर्णन है जो श्रीमद्भागवत महापुराण के दशम स्कन्ध में पाई जाती हैं। हरि चरित्र इसलिए अपर नाम भागवत भाषा है। हरि चरित्र को एक पूरक कृतित्व कहा जाता है। रायबरेली उ०प्र० निवासी लालचदास ने अपने जीवन काल में इसके ४५ अध्यायों को ही लिखा था। उनके स्वर्गवास के पश्चात् उनके शिष्य आसानन्द ने पर्याप्त अन्तराल में इसे ९० अध्यायों में पूरा किया।
मूल्य ३७५ तीन सौ पचहत्तर रुपये मात्र
पृष्ठ ६५८ सजिल्द
हरि चरित्र में दोहा-चौपाई छन्द का प्रयोग हुआ है। यह काव्यग्रन्थ, रस, छन्द, अलंकार आदि काव्य सौष्ठवों से परिपूर्ण है। भाव व भाषा गाम्भीर्य के साथ भाषा में प्रवाह व सरसता है। इस भक्तिकाव्य को संकलित व सम्पादित करने का महान कार्य विज्ञान परिषद के प्रधानमंत्री प्रो० शिवगोपाल मिश्र ने किया है। ऐसे विलक्षण व महत्वपूर्ण अवधी भाषा के काव्य को सम्पादित कर प्रो० शिवगोपाल मिश्र ने मॉं सरस्वती के कोश में अभिवृद्धि की है।
हिन्दुस्तानी एकेडेमी को ऐसी महनीय कृति प्रकाशित करते हुए न केवल अतिशय प्रसन्नता हो रही है अपितु गर्व की अनुभूति भी हो रही है। मुझे विश्वास है कि हरि चरित्र एकेडेमी के महत्वपूर्ण प्रकाशनों में अपना स्थान बनाएगा। आधुनिक हिन्दी के साथ-साथ अवधी, भोजपुरी व ब्रजभाषा के विद्वानों द्वारा भी यह ग्रन्थ समादृत होगा ऐसा मेरा अन्तर्मन कह रहा है। अस्तु।
रंग पंचमी, चैत्र कृष्ण
संवत् २०६५
डॉ० एस०के० पाण्डेय
सचिव
हिन्दुस्तानी एकेडेमी
स्वागत है इस भव्य कृति का !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर, फ़िर से एक अच्छी जानकारी दी आप ने , धन्यवाद
जवाब देंहटाएंअच्छा! यह पुस्तक देखनी होगी।
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