जैसा कि आप जानते ही हैं, हिन्दुस्तानी एकेडेमी ने अपने सभागार में आज एक गोष्ठी का आयोजन किया था। यह आयोजन उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान, लखनऊ के साथ संयुक्त रूप से किया गया था, जिसके कार्यकारी अध्यक्ष और मशहूर व्यंग्यकार गोपाल चतुर्वेदी ने उपस्थित होकर कार्यक्रम को आकर्षक बना दिया।एकेडेमी के बाहर का सन्नाटा बताता है कि सभी लोग हाल के भीतर हैं। इलाहाबाद का सांस्कृतिक एवं साहित्यिक योगदान जानने और उसपर चर्चा करने के लिए जितने लोग आये उनसे पूरा हाल कमोबेश भर ही गया था। फिर भी मेरी उम्मीद; या कहें इच्छा से कम ही लोग आये थे।
मारकण्डेय जी वयोवृद्ध हो चुके हैं, तबियत भी बहुत अच्छी नहीं थी; लेकिन हिन्दी के प्रति ऐसा अनुराग रखते हैं कि आने में तनिक देर नहीं की। बोलने के लिए खड़े नहीं हो सके लेकिन बैठे-बैठे निराला और महादेवी की चर्चा में डूबे तो बोलते ही रह गये। भाव विभोर होकर गोपाल चतुर्वेदी जी अपलक निहारते रहे।
· इलाहाबाद विश्वविद्यालय के आधुनिक इतिहास विभाग के प्रो. हेरम्ब चतुर्वेदी ने विषय का प्रवर्तन किया।
· कवि व साहित्यकार यश मालवीय ने स्वातंत्र्योत्तर काल में यहाँ की साहित्यिक गतिविधियों पर अपना आलेख पढ़ा।
· पद्म विभूषण से सम्मानित तथा ‘सरस्वती’ पत्रिका के २० वर्षों तक सम्पादक रहे श्रीनारायण चतुर्वेदी ‘भैया जी’ पर आधारित साहित्य वैचारिकी का विमोचन भी हुआ।
· डॉ.रामनरेश त्रिपाठी ने यहाँ की सांस्कृतिक विरासत की चर्चा करते हुए इसको अक्षुण्ण रखने पर जोर दिया।
· साहित्यकार नरेश मिश्र ने यहाँ की लोक परम्पराओं पर प्रकाश डाला।
· हिन्दी विभाग के डॉ. मुश्ताक अली ने इलाहाबाद की पत्रकारिता की चर्चा इस शेर से प्रारम्भ की। बहुत शोर सुनते थे पहलू-ए-दिल में; काटा तो बस एक कतरा-ए-खूँ निकला। सुनहरे अतीत और बदहाल वर्तमान से दुःखी दिखे।
· प्रो. अनीता गोपेश ने इलाहाबाद की नाट्य परम्परा में बंगाली और पहाड़ी रंगमंच के प्रभाव को रेखांकित किया। भारतेन्दु के सर्वोपरि योगदान की चर्चा की।
· डॉ. रेखा रानी ने जानकी बाई ‘छप्पन छुरी’ की चर्चा से संगीत के सफ़रनामें की शुरुआत की। बात प्रयाग संगीत समिति की वर्तमान निष्क्रियता तक पहुँची।
· प्रो.ए.ए. फातमी ने उर्दू अदब की चर्चा करते हुए अनेक उम्दा शेर पढ़कर माहौल खुशगवार बना दिया।
[इन चित्रों में श्रोता समूह नहीं दिख रहा है तो यह मेरी गलती है; क्यों कि मोबाइल से फोटोग्राफी करने में समूह का फोटो अच्छा नहीं आता। सच कहूँ तो मुझे ध्यान भी नहीं आया। वैसे प्रोफेशनल फोटोग्राफर अच्छी तस्वीरें कल देगा।]
(सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी)
कोषाध्यक्ष- हिन्दुस्तानी एकेडेमी, इलाहाबाद।
ओह सिद्धार्थ जी बड़ी मेहनत से और बड़ी सुन्दर प्रस्तुति की है आपने गोष्ठी की।
जवाब देंहटाएंभविष्य में कभी मैं भी सुनने आऊंगा।
very nice information about hindi
जवाब देंहटाएंमेरा आमंत्रण स्वीकारें समय निकल कर मेरे ब्लॉग पर पधारें
Siddarth ji
जवाब देंहटाएंAfter a long perdiod I visited ur blog. Blog on SURYA BHAGWAN was so informative.Ur post on Allahabad was also good one. Keep writing regularly.