पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार एकेडेमी सभागार में गत २७ जनवरी को प्रदेश के उच्च शिक्षा मन्त्री डॉ. राकेश धर त्रिपाठी ने एकेडेमी द्वारा हाल ही में प्रकाशित तीन पुस्तकों का लोकार्पण किया। इस अवसर पर कार्यक्रम की अध्यक्षता इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सेवा निवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री प्रेमशंकर गुप्त ने की।
जिन पुस्तकों का लोकार्पण किया गया उनमें एकेडेमी के सचिव डॉ. सुरेन्द्र कुमार पाण्डेय द्वारा सम्पादित ‘सूर्य विमर्श’ नामक ग्रन्थ भी था जिसकी चर्चा यहाँ पूर्व में की जा चुकी है। सूर्य से सम्बन्धित प्रायः सभी आयामों को छूने वाली यह हिन्दी में लिखी गयी सम्भवतः सबसे अच्छी पुस्तक है जिसे निश्चित ही भविष्य में एक सन्दर्भ ग्रन्थ के रूप में उच्च प्रतिष्ठा प्राप्त होगी। इसके अतिरिक्त एकेडेमी द्वारा वर्ष १९३३ ई. में प्रकाशित की गयी पुस्तक ‘भारतीय चित्रकला’ का द्वितीय संस्करण (पुनर्मुद्रण) भी लोकार्पित किया गया। इस पुस्तक को तत्कालीन संयुक्त प्रान्त (यू.पी.) के एक प्रशासनिक अधिकारी श्री नानालाल चमनलाल मेहता, आई.सी.एस. द्वारा लिखा गया था। लेखक ने इस पुस्तक की रचना में मैथिली शरण गुप्त, ठाकुर दलजीत सिंह राठौर और डॉ. ताराचन्द के योगदान का विशेष उल्लेख किया है। इस विषय पर हिन्दी में लिखी गयी कदाचित् यह पहली पुस्तक है जो भारतीय चित्रकला के सम्बन्ध में मौलिक जानकारी प्रदान करती है।
किन्तु जिस पुस्तक ने एकेडेमी के प्रकाशन इतिहास में एक मील का पत्थर बनकर सबको अचम्भित कर दिया है वह है डॉ. कविता वाचक्नवी द्वारा एक शोध-प्रबन्ध के रूप में अत्यन्त परीश्रम से तैयार की गयी कृति “समाज-भाषाविज्ञान; रंग-शब्दावली: निराला-काव्य”। इस सामग्री को पुस्तक का आकार देने के सम्बन्ध में एक माह पूर्व तक किसी ने कल्पना तक नहीं की थी। स्वयं लेखिका के मन में भी ऐसा विचार नहीं आया था। लेकिन एकेडेमी के सचिव ने संयोगवश इस प्रकार की दुर्लभ और अद्भुत सामग्री देखते ही इसके पुस्तक के रूप में प्रकाशन का प्रस्ताव रखा जिसे सकुचाते हुए ही सही इस विदुषी लेखिका द्वारा स्वीकार करना पड़ा। कदाचित् संकोच इसलिए था कि दोनो का एक-दूसरे से परिचय मुश्किल से दस-पन्द्रह मिनट पहले ही हुआ था। यह नितान्त औपचारिक मुलाकात अचानक एक मिशन में बदल गयी और देखते ही देखते मात्र पन्द्रह दिनों के भीतर न सिर्फ़ बेहद आकर्षक रूप-रंग में पुस्तक का मुद्रण करा लिया गया अपितु एक गरिमापूर्ण समारोह में इसका लोकार्पण भी कर दिया गया। रंग शब्दों को लेकर हिन्दी में अपनी तरह का यह पहला शोधकार्य है। इसके साथ ही साथ महाप्राण निराला के कालजयी काव्य का रंगशब्दों के आलोक में किया गया समाज-भाषावैज्ञानिक अध्ययन भावी शोधार्थियों के लिए एक नया क्षितिज खोलता है। निश्चय ही यह पुस्तक हिदी साहित्य के अध्येताओं के लिए नयी विचारभूमि उपलब्ध कराएगी।
इस समारोह में एकेडेमी की ओर से हिन्दी, संस्कृत एवम उर्दू के दस लब्धप्रतिष्ठ विद्वानों को सम्मानित भी किया गया। यद्यपि इनमें से डॉ. दूधनाथ सिंह, डॉ. राजलक्ष्मी वर्मा, डॉ. अली अहमद फ़ातमी और श्री एम.ए.कदीर अलग-अलग व्यक्तिगत, पारिवारिक या स्वास्थ्य सम्बन्धी कारणों से उपस्थित नहीं हो सके, तथापि सभागार में उपस्थित विशाल विद्वत् समाज के बीच छः विद्वानों को उनके उत्कृष्ट कार्य के लिए शाल, नारियल, व सरस्वती की अष्टधातु की प्रतिमा भेंट कर सम्मानित किया गया। प्रशस्ति पत्र भी प्रदान किए गए। एकेडेमी द्वारा अन्य अनुपस्थित विद्वानों के निवास स्थान पर जाकर उन्हें सम्मान-भेंट व प्रमाण-पत्र प्रदान कर दिया जाएगा।
इस अवसर के कुछ यादगार क्षण हमने कैमरे में कैद किए सिर्फ़ आपके लिए-
समाज-भाषाविज्ञान रंग-शब्दावली : निराला-काव्य
लेखिका- डॉ. कविता वाचक्नवी
पृष्ठ-२३१ मूल्य- रु.१५०/-
भारतीय चित्रकला
लेखक- नानालाल चमनलाल मेहता, आई.सी.एस.
पृष्ठ- १४४ मूल्य- रु.१५०/-
सूर्य विमर्श
सम्पादक- डॉ. सुरेन्द्र कुमार पाण्डेय
पृष्ठ-३२४ मूल्य- रु.१७५/-
प्रकाशक:
हिन्दुस्तानी एकेडेमी
१२, कमला नेहरू मार्ग
इलाहाबाद, उ.प्र.
२११००१
दूरभाष- ०५३२-२६००६२५
प्रस्तुति-
सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
कोषाध्यक्ष- हिन्दुस्तानी एकेडेमी
सुन्दर! शुक्रिया इसे दिखाने-पढ़वाने के लिये!
जवाब देंहटाएंवहां जा नहीं पाये थे, सो इस विवरण की प्रतीक्षा थी। आपको धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंबधाई और धन्यवाद इसे हमारे साथ बाँटनें के लिये
जवाब देंहटाएंइस पूरे विवरण के लिये धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंकविता जी आप को और हिंदुस्तानी एकेडमी को बधाइयाँ.....एकेडमी की सक्रियता बनी रहे
जवाब देंहटाएंचमत्कृत दर्शक ! भला क्यों ? समारोह की सफलता पर बधाई !
जवाब देंहटाएंएकेडेमी के प्रति, पाण्डेय जी के प्रति व सिद्धार्थ जी के प्रति अतिशय आभारी तो हूँ ही; साथ ही अनूप जी,ज्ञानदतजी,अनूप भार्गव जी, हिमांशु जी, बोधिसत्व जी, व मिश्राजी!आप सभी मित्रों की बधाई के लिए भी धन्यवादी हूँ।
जवाब देंहटाएंहिमांशु जी, आपने पुस्तकों की खरीद के सम्बन्ध में पूछा है, आशा है कि सिद्धार्थ जी ने आप को क्रय के लिए आवश्यक पत्र का माध्यम बता दिया होगा।
इस विस्तृत रपट के लिये आभार !!
जवाब देंहटाएंसूर्यविमर्श का परिचय अच्छा लगा. वैज्ञानिक पुस्तकों मेरी काफी रुचि है.
सस्नेह -- शास्त्री
-- हर वैचारिक क्राति की नीव है लेखन, विचारों का आदानप्रदान, एवं सोचने के लिये प्रोत्साहन. हिन्दीजगत में एक सकारात्मक वैचारिक क्राति की जरूरत है.
महज 10 साल में हिन्दी चिट्ठे यह कार्य कर सकते हैं. अत: नियमित रूप से लिखते रहें, एवं टिपिया कर साथियों को प्रोत्साहित करते रहें. (सारथी: http://www.Sarathi.info)
hi, good one...thanks for the information.
जवाब देंहटाएंby the way when i was searching for Hindi typing tool..found "quillpad' do u use the same to type in Hindi in ur blog...?
नमस्कार ,केदार सामन के विषय में सम्पूर्ण जानकारी दें ,संग्रह भेजने का पता व उससे सम्बंधित जानकारी दें |
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