जिस प्रकार राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम में पूरे देश में प्रयाग की अग्रणी भूमिका रही है उसी प्रकार हिन्दी के विकास, उन्नयन एवं समृद्ध बनाने में प्रयाग का प्रकृष्ट स्थान रहा है। यहाँ की हिन्दी संस्थाओं हिन्दी साहित्य सम्मेलन व हिन्दुस्तानी एकेडेमी तथा हिन्दी के मूर्धन्य विद्वानों एवं लेखकों ने हिन्दी को समृद्ध, समुन्नत व लोकप्रिय बनाने में महती भूमिका निभाई है। प्रस्तुत है प्रयाग की इन दो ऐतिहासिक हिन्दी संस्थाओं का संक्षिप्त परिचय।
१.हिन्दुस्तानी एकेडेमी
हिन्दुस्तान की अधिसंख्य आबादी द्वारा हिन्दी व उर्दू भाषा बोली जाती थी। देश की आजादी में भी हिन्दी और उर्दू का अत्यधिक योगदान रहा है। हिन्दुस्तानी भाषा का तात्पर्य हिन्दी + उर्दू से है। इसी हिन्दुस्तानी के संरक्षण, संवर्द्धन के लिए हिन्दुस्तानी एकेडेमी की स्थापना 22 जनवरी, 1927 में हुई। इसका उद्घाटन 29 मार्च, 1927 को लखनऊ में तत्कालीन प्रान्तीय गवर्नर सर विलियम मॉरिस द्वारा किया गया। इसके गठन में तत्कालीन शिक्षा मंत्री मा. राय राजेश्वर बली, पं. यज्ञनारायण उपाध्याय, स्व. हाफिज हिदायत हुसैन, डा. तेज बहादुर सप्रू का प्रमुख योगदान था।
एकेडेमी का मुख्य उद्देश्य व कार्य इस प्रकार रहा है :-
1. राजभाषा हिन्दी, उसके साहित्य तथा ऐसे अन्य रूपों एवं शैलियों (जैसे उर्दू, ब्रजभाषा, अवधी, भोजपुरी आदि) का परिरक्षण, संबर्द्धन और विकास करना, जिससे हिन्दी समृद्ध हो सकती है।
2. हिन्दीतर भारतीय भाषाओं तथा विदेशी भाषाओं की साहित्यिक कृतियों का हिन्दी में अनुवाद कराना।
3. मौलिक हिन्दी कृतियों, सृजनात्मक साहित्य का प्रोत्साहन एवं प्रकाशन।
4. राज्य सरकार की सहमति से हिन्दी में सन्दर्भ ग्रन्थ तैयार कराना तथा उनका प्रकाशन।
5. प्रतिष्ठित विद्वानों एवं लेखकों को एकेडेमी का अधिसदस्य चुनना।
6. एकेडेमी के हितैषियों को इसका अधिसदस्य चुनना।
7. लेखकों, कवियों, साहित्यकारों, वैज्ञानिकों तथा कलाकारों का सम्मान करना।
8. प्रतिष्ठित विद्वानों के व्याख्यानों की व्यवस्था करना।
9. साहित्यिक गतिविधियों पर विचार करने के लिए वार्षिक सम्मेलन का आयोजन करना।
10. प्राचीन एवं मध्ययुगीन हिन्दी साहित्य के वैज्ञानिक रूप से सम्पादित पाठों का प्रकाशन।
हिन्दुस्तानी एकेडेमी के दो अंग हैं :-
1. परिषद 2. कार्यसमिति
परिषद एकेडेमी की नीति का निर्धारण करती है। दोनो अंगों में सदस्यों का आमेलन शासकीय नामांकन द्वारा व विभिन्न संस्थाओं (जैसे- हिन्दी साहित्य सम्मेलन, भारतीय हिन्दी परिषद, विज्ञान परिषद, शिबली एकेडेमी-आजमगढ़, हिन्दी समिति-लखनऊ, ब्रज साहित्य मण्डल-मथुरा, नागरी प्रचारिणी सभा-काशी) के प्रतिनिधियों द्वारा होता है।
हिन्दुस्तानी एकेडेमी के अधिसंख्य सदस्य जो रह चुके हैं उनमें पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’, राजर्षि पुरूषोत्तमदास टण्डन, डा. सम्पूर्णानन्द, प्रो. गोविन्द चन्द्र पाण्डेय प्रमुख हैं।
एकेडेमी के अध्यक्ष पद पर जिन लब्ध प्रतिष्ठ विद्वानों ने कार्य किया है, उनमें प्रमुख हैं – डा. तेज बहादुर सप्रू, राय राजेश्वर बली, श्री कमलाकान्त वर्मा, श्री बालकृष्ण राव, डा. रामकुमार वर्मा, न्यायमूर्ति सुरेन्द्र नाथ द्विवेदी आदि।
एकेडेमी के सचिव पद को जिन विद्वानों ने सुशोभित किया है उनमें प्रमुख हैं – डा. ताराचन्द, डा0 धीरेन्द्र वर्मा, श्री विद्या भास्कर, श्री उमाशंकर शुक्ल, डा. जगदीश गुप्त आदि।
एकेडेमी में आयोजित होने वाली व्याख्यान मालाएं, परिसंवाद, संगोष्ठियाँ अत्यन्त उच्चस्तरीय, गम्भीर व महत्त्वपूर्ण होती हैं।
एकेडेमी की त्रैमासिक शोध परक पत्रिका ‘हिन्दुस्तानी’ सन् 1931 से प्रकाशित हो रही है। 1948 तक यह हिन्दी व उर्दू दोनो भाषाओं में प्रकाशित होती थी। अब केवल हिन्दी में ही यह प्रकाशित होती है। इसके लेख शोधपरक, आलोचनात्मक एवं गवेषणात्मक प्रकृति के होते हैं। हिन्दी साहित्य जगत में ‘हिन्दुस्तानी’ को अतिशय आदर से देखा जाता है। बीच-बीच में हिन्दी विद्वानों के नाम पर विशेषांक भी प्रकाशित होते हैं जैसे- सूर, प्रेमचन्द, राहुल सांकृत्यायन, हजारी प्रसाद द्विवेदी आदि।
एकेडेमी के पास अपना समृद्ध पुस्तकालय है। जिसमें लगभग १८००० पुस्तकें हैं।
हिन्दुस्तानी एकेडेमी ने लगभग २२५ मूल्यवान पुस्तकों का प्रकाशन भी किया है। जिसमें कुछ मुख्य पुस्तकें हैं - प्रयाग प्रदीप, घाघ और भड्डरी, शंकराचार्य, मानस में तत्सम शब्द, संत तुकाराम, हिन्दी वीरकाव्य, भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, जायसी, नैषध परिशीलन, हिन्दी नाटक और रंगमंच, अवधी का विकास, भोजपुरी लोकगाथा, अभिधर्म कोश, नौतर्ज मुरस्सा, आध्यात्म रामायण, इन्तखाबे दाग, आलमे हैवानी आदि।
‘हिन्दुस्तानी एकेडेमी’ द्वारा अब तक लगभग 30 विद्वानों को उनकी प्रतिष्ठित कृतियों के लिए सम्मानित किया गया है। जिसमें उल्लेखनीय हैं - मुंशी प्रेमचन्द, श्री जगन्नाथदास ‘रत्नाकर’, मौलाना सैयद अली नक़वी सफी, बाबू गुलाब राय, पं. राम नरेश त्रिपाठी, आचार्य पं. रामचन्द्र शुक्ल, आचार्य परशुराम चतुर्वेदी आदि।
वर्तमान में एकेडेमी का भवन चन्द्रशेखर आजाद पार्क (एल्फ्रेड पार्क) में स्थित है। यह भवन 1963 में बना।
एकेडेमी की आय का मुख्य साधन सरकारी अनुदान, प्रकाशित पुस्तकों की बिक्री व सभागार से प्राप्त किराया है। इस समय एकेडेमी में स्तरीय पुस्तकों का मुद्रण/प्रकाशन व दुर्लभ पुस्तकों का पुनर्मुद्रण कार्य तीव्रगति से चल रहा है।
हिन्दी व उसकी सहयोगी भाषाओं को समृद्ध व लोकप्रिय बनाने में एकेडेमी का योगदान अविस्मरणीय है। राष्ट्रभाषा को विश्व की प्रमुख भाषाओं के समकक्ष बैठाना और उसकी सर्वांगीण उन्नति ही एकेडेमी का संकल्प है। इस संकल्प को पूरा करने में एकेडेमी का आदर्श वाक्य भवभूति के उत्तररामचरितम् से लिया गया है। यह है- ‘‘विन्देम देवतां वाचम्।’’ अर्थात् हम देवताओं की वाणी प्राप्त करें। नि:सन्देह एकेडेमी अपने आदर्श वाक्य के अनुसरण में हिन्दी सेवा में रत है।
(डा. एस.के. पाण्डेय)
सचिव-हिन्दुस्तानी एकेडेमी
एवं अपर जिलाधिकारी(वित्त एवं राजस्व)
इलाहाबाद
... ...अगली कड़ी- भाग-२: हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग
बहुत आभार जानकारी के लिये। क्या शानदार अतीत है!
जवाब देंहटाएंअगर मैं वर्तमान में एस अकादमी से पूर्णकालिक जुड़ा होता, तो फण्ड-रेजिंग मुहीम में निकल जाता छ महीने को!
इस अकादमी को पूर्णत: अधुनिक बनना चाहिये अब।
अच्छी जानकारी..
जवाब देंहटाएंअगली कड़ी की प्रतीक्षा है...