छठ पर्व की धूम बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश से आगे बढ़ते हुए यहाँ के लोगों के साथ देश के कोने-कोने में फैल रही है। इस अवसर पर हिन्दुस्तानी एकेडेमी ने इलाहाबाद स्थित भारतीय विद्या भवन व सौदामिनी संस्कृत महा विद्यालय के साथ मिलकर अखिल भारतीय ज्योतिषपर्व सूर्यषष्ठी समारोह का आयोजन किया। इस कार्यक्रम में संस्कृत और ज्योतिष के पण्डितों ने वेदों, पुराणों और ज्योतिष शास्त्र पर आधारित सूर्यदेव की महत्ता पर विशद चर्चा की। अनेक शोधपत्र पढ़े गये।
इन्हीं में से एक शोधपत्र संक्षिप्त रूप में यहाँ प्रस्तुत है। (सभी व्याख्यानों, व शोधपत्रों को एक स्थान पर पुस्तकाकार रूप में एकेडेमी द्वारा शीघ्र प्रकाशित किया जाएगा।)
पुराणों में सूर्य तत्व प्रतिष्ठा
सूर्य शब्द सृगतौ परस्मैपदी धातु से क्यप् प्रत्यय का योग करने पर निष्पन्न होता है। इसके अतिरिक्त सू प्रेरणे परस्मैपदी धातु से क्यप् प्रत्यय का योग करने पर भी सूर्य शब्द निष्पन्न होता है।
एकल धातुओं के अतिरिक्त कुछ युगल धातुओं के योग से भी सूर्य शब्द की व्युत्पत्ति की गयी है। सू प्रेरणे परस्मैपदी धातु तथा ईर् गतौ परस्मैपदी धातु से क्यप् प्रत्यय का योग करने पर ‘सूर्य’ शब्द निष्पन्न होता है। इसके अतिरिक्त सू´ प्रसवे तथा ईर् गतौ धातु से क्यप् प्रत्यय का योग करने पर ‘सूर्य’ शब्द निष्पन्न होता है। सू´ सवने परस्मैपदी धातु तथ ईर् गतौ धातु से क्यप् प्रत्यय का योग करने पर भी ‘सूय’ शब्द निष्पन्न होता है।
‘सूर्य’ को ही सविता, सवितृ, पूषा, अर्यमा, अर्क, त्वष्ठा, मित्र, विवस्वान्, विभावसु, दिनेश्वर, दृगीश्वर, भानु, दिनकर, दिवाकर, रवि, प्रभाकर, भास्कर, आदित्य आदि नामों से अभिहित किया जाता है।
संस्कृत भाषा में सूर्य को स्वर, सुवर तथा सूर्य कहते हैं जबकि अवेस्ता में इसे ‘हृर’ ग्रीक में ‘हेलियोस’, लैटिन में ‘सोल’, गाथिक में ‘सोयल’, वेल्श में ‘ह्यूल’, प्राचीन फारसी तथा लिथुआनियन में ‘साउले’, स्लाविक में ‘सांल्जे’, तथा आंग्लभाषा में ‘सन’ कहते हैं।
मत्स्य पुराण में अनेक स्थलों पर सूर्य को ‘अर्यमा’, ‘अर्क’ तथा ‘पूषा’ शब्द से सम्बोधित किया गया है -
ब्रह्मादीनां परं धाम त्रयाणमपि संस्थिति:।*1|
वेदमूर्तावत: पूषा पूजनीय: प्रयत्नत:।। (मत्स्यपुराण)
दक्षिणे तदवदर्काय तथाऽर्यक्णेति नैऋते।*2|
पूष्णेत्युत्तरत: पूण्यमानन्दायेत्यत: परम्।। (मत्स्यपुराण)
इसके अतिरिक्त महाभारत के वनपर्व *3 में भी सूर्य के लिए ‘पूषा’ शब्द प्रयुक्त हुआ है।
पद्मपुराण में सूर्य के लिए ‘सुवर्णरेता’, ‘मित्र’, ‘पूषा’ तथा ‘त्वष्टा’ आदि शब्दों का प्रयोग हुआ है -
‘‘सुवर्णरेता मित्रश्च पूषा त्वष्टा गमस्तिमान’’*4 (पद्मपुराण)
विष्णुपुराण में ‘विवस्वान्’, ‘सविता’ तथा ‘कर्मसाक्षी’ विशेषण सूर्य के लिए प्रयुक्त हुआ है-
नमो विस्वते ब्रह्मभास्वते विष्णुतेजसे।*5|
जगत्सवित्रे शुचये सवित्रे कर्मसाक्षिणे।। (विष्णुपुराण)
ब्रह्मपुराण तथा श्रीमद्भागवत् पुराण में भी ‘सूर्य’ के लिए ‘सविता’ शब्द प्रयुक्त हुआ है -
‘‘तत्पुत्रक्चनं श्रुत्वा सविताऽचिन्तयत् तदा।’’*6 (ब्रह्मपुराण)
‘‘परोरज: सवितुर्जातवेदो देवस्य भर्गो मनसेदं जजान।’’*7 (श्रीमद्भागवत्पुराण)
मत्सयपुराण में सूर्य को ‘दिनेश्वर’ तथा सूर्यरथ का विभिन्न आदित्यों से अधिष्ठित होने के कारण सूर्य को ‘द्वादशात्मा’, योगी, सत्वमूर्ति, विभावसु एवं पूर्व समुद्र के जल में उत्पन्न होने और पश्चिम समुद्र में जल में विलीन हो जाने के कारण सूर्य को ‘नारायण’ भी कहा गया है -
‘‘चचार मध्ये लोकानां द्वादशात्मा दिनेश्वर:।।’’ *8 (मत्स्यपुराण)
‘‘भूत्वा नारायणो योगी सत्त्वमूर्तिर्विभावसु:।’’*9 (मत्स्यपुराण)
पद्मपुराण में सूर्य को ‘विश्वरूप’, ‘सहस्त्ररश्मि’, ‘रूद्रवपुष’, ‘भक्तवत्सल’, ‘पद्मनाभ’ तथा ‘कुण्डलांगदभूषित’ आदि विशेषणों से विभूषित किया गया है -
नमस्ते विश्वरूपाय नमस्ते विश्वरूपिणे।*10
सहस्त्ररश्मये नित्यं नमस्ते सर्वतेजसे।। (पद्मपुराण)
‘नमस्ते रूद्रवपुषे नमस्ते भक्तवत्सल।’ *11 (पद्मपुराण)
पद्मनाथ नमस्तेऽस्तु कुण्डलांगदभूषित।*12
नमस्ते सर्वलोकेषु सुप्तांस्तान् प्रतिबुध्यसे।। (पद्मपुराण)
पुराणों में सूर्य को विविध प्रकार की विद्याओं का अधिष्ठाता माना गया है। इस सन्दर्भ में महाभारत के शान्तिपर्व*13 श्रीमद्भागवत्पुराण*14 तथा विष्णुपुराण*15 में महर्षि वैशम्पायन के शिष्य याज्ञवल्क्य द्वारा सूर्य से शुक्लयजुर्वेद प्राप्त करने की कथा प्रख्यात है।
विष्णुपुराण के अनुसार एकदा वैशम्पायन ने अपने शिष्य याज्ञवल्क्य से क्रुद्ध होकर कहा कि तुमने जो कुछ भी मुझसे अधीत किया है, वह त्याग कर यहाँ से प्रस्थान करो -
तत: क्रद्धो गुरू: प्राह याज्ञवल्क्यं महामुनिम्।*16
मुच्यतां यत् त्वयाधीतं मत्तो विप्रावमानक।। (विष्णुपुराण)
तत्पश्चात् याज्ञवल्क्य रक्त से परिपूर्ण मूर्तिमान् यजुर्वेद को महर्षि वैशम्पायन के समक्ष वमन करके चले गये और नवीन यजुष~ मन्त्रों की प्राप्ति हेतु त्रयीमयात्मक सूर्य की स्तुति करने लगे। तदनन्तर सूर्य अश्व अर्थात् वाजी का रूप धारण करके आये और याज्ञवल्क्य को उन मन्त्रों का उपदेश प्रदान किया जो उनके गुरू को भी ज्ञात नहीं थे। वाजि रूपी सूर्य से उपदिष्ट होने के कारण उन मन्त्रों की संहिता वाजसनेयी संहिता कहलायी -
एवमुक्तो ददौतस्मै यजूंषि भगवान् रवि:।*17
अयातयाम संज्ञानि यानि वेत्ति न तद्गुरू:।। (विष्णुपुराण)
‘‘........वाजिनस्ते समाख्याता: सूर्योऽप्यश्वोऽभवद्यत:।।’’*18 (विष्णुपुराण)
रामायण के उत्तरकाण्ड के अनुसार अंजनीपुत्र श्री हनुमान् को बाल्यकाल में ही सूर्य ने सम्पूर्ण विद्याओं का ज्ञान प्रापत करने का वरदान दिया था -
यदा तु शास्त्राण्यध्येतुं बुद्धिरस्य भविष्यति।*19
तदास्य शास्त्रं दास्यामि येन वाग्मी भविष्यति।। (रामायण उत्तरकाण्ड)
बाल्यकाल के पश्चात् श्री हनुमान ने सूर्योदय से अस्ताचल तक सूर्य का अनुगमन करते हुए व्याकरण तथा अन्य शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त किया था -
असौ पुनव्र्याकरणं ग्रहीष्यन् सूर्योन्मुख: पृष्ठगम: कपीन्द्र:।*20
उद्यद्गिरेस्तगिरिं जगाम ग्रन्थं महद् धारयनप्रमेय:।। (रामायण उत्तरकाण्ड)
विष्णु पुराण में सूर्य को त्रयीमयात्मक कहा गया है -
‘ऋग्यजु: सामभूताय त्रयीधाम्ने च ते नम:’*21(विष्णुपुराण)
भागवत् पुराण में भी सूर्य को त्रयीमय अर्थात् वेदस्वरूप कहा गया है। सूर्य साक्षात् नारायण हैं जो लोककल्याण के लिए अपने शरीर को द्वादश आदित्य रूपी बारह भागों में विभक्त करके विभिन्न ऋतुओं का विभाजन करते हैं -
स एष भगवानादिपुरूष एव साज्ञान्नारायणो लोकानां स्वस्तये आत्मानं त्रयीमयं कर्मविशुद्धिनिमित्तं कविभिरपि च वेदेन विजिज्ञास्यमानो द्वादशधा विभज्य षट्सु वसन्तादिषु यथोपजोषम् ऋतुगुणान् विदधाति।*22 (भागवत्पुराण)
भागवत् पुराण में सूर्य के रथ का प्रतीकात्मक वर्णन करते हुए बताया गया है कि गायत्री, उष्णिक्, अनुष्टुप, त्रिष्टुप, वृहती, पंक्ति, जगती ये सप्त वैदिक छन्द ही सूर्य के सप्ताश्व हैं। संवत्सर ही सूर्य के रथ का चक्र है। रथ में माह रूपी बारहे अरे हैं। ग्रीष्म, वर्षा, शिशिर रथ की तीन नाभियाँ हैं तथा षड्ऋतुएं ही उनकी नेमियाँ हैं -
‘यत्र ह्याश्छन्दोनामान: सप्तारूणयोजिता: वहन्तिदेवमादित्यम्।’*23(भागवत्पुराण)
‘यस्यैकं चक्रं द्वादशारं षण्नेमि त्रिणाभि संवत्सरात्मकम्आमनन्ति।’* 24 (भागवत्पुराण)
मत्स्यपुराण में भी सूर्य के रथ का वर्णन प्राप्त होता है। मत्स्य पुराण के अनुसार तीव्रगामी, एक सहस्त्र रश्मियों से देदीप्यमान् तथा सप्ताश्वयुक्त विशेषणों से समन्वित रथ के द्वारा सूर्य मेरू पर्वत की प्रदक्षिणा करते हुए दिवस और रात्रि का विभाजन करते हैं-
सूर्य: सप्ताश्वयुक्तेन रथेनामितगामिना।*25
श्रिया जाज्वल्मानेन दीप्यमानैश्च रश्मिभि:।। (मत्स्यपुराण)
‘उदयास्तगचक्रेण मेरूपर्वतागामिना।।’*26 (मत्स्यपुराण)
सहस्त्ररश्मियुक्तेन भ्राजमानेन तेजसा।*27
चचार मध्ये लोकानां द्वादशात्मा दिनेश्वर:।। (मत्स्यपुराण)
मत्स्य पुराण के अनुसार निशाकाल में सूर्य के तेज का चतुर्थांश अग्नि में प्रविष्ट हो जाता है तथा दिवसकाल में अग्नि का चतुर्थांश सूर्य में प्रविष्ट कर जाता है। इसीलिए दिन में अग्नि प्रभाहीन रहती है।
प्रभासौरीतुपादेन अस्तंयाति दिवाकरे।*28
अग्निमाविशते रात्रौ तस्मादग्नि: प्रकाशते।। (मत्स्यपुराण)
उदिते तु पुन: सूर्ये ऊष्माग्नेस्तु समाविशेत्।*29
पादेन तेजसश्चाग्ने: तस्मात् सन्तपते दिवा।। (मत्स्यपुराण)
महाभारत के वनपर्व में सूर्य को जगत् का चक्षु तथा प्राणियों की आत्मा कहा गया है -
‘त्वं भानो जगतश्चक्ष्स्त्वमात्मा सर्वदेहिनाम्।।*30 (महाभारत वनपर्व)
इसके अतिरिक्त महाभारत के वनपर्व में ही सूर्य को परब्रह्म का व्यक्त स्वरूप होने के कारण समस्त प्राणियों का मूल कारण, ज्ञानियों, योगियों तथा मुमुक्षुओं की अन्तिम गति बताया गया है -
‘त्वं योनि: सर्वभातानां त्वमाचार: क्रियावताम्।’*31(महाभारत वनपर्व)
विष्णुपुराण में सूर्य को विष्णु के अंश से उत्पन्न अविकारी ज्योति कहा गया है-
‘‘वैष्ण्वोंशऽपर: सूर्यो योऽन्तज्र्योतिरसंप्लवम्।*33(विष्णुपुराण)
भागवत् पुराण में सूर्य को देवता, पशु, पक्षी, मनुष्य तथा उद्भिज्ज जगत् की आत्मा तथा दृगीश्वर कहा गया है -
देवतिर्यङ् मनुष्याणां सरीसृपसवीरूधाम्।*34
सर्वजीवनिकायानां सूर्य आत्मा दृगीश्वर:।। (भागवत्पुराण)
ब्रह्मपुराण में भी सूर्य को ‘विश्वचक्षु’ तथा ‘विश्वतोमुख:’ कहा गया है-
देवोऽसौ विश्वतश्चक्षुर्योदेवो विश्वतोमुख:।*35
यो रश्मिभिस्तु धमते दिव्यं यो जनको मत:।। (ब्रह्मपुराण)
स सूर्य एक एवात्र साक्षाद्रूपेण सर्वदा।*36
स्थितिं करोतु तन्मूर्तौ भविष्यन्त्यखिला स्थिता:।। (ब्रह्मपुराण)
मत्स्यपुराण में ब्रह्मा, विष्णु, महेश तथा दिनेश को एक रूप मानकर जगत् की चार सर्वोत्कृष्ट शक्तियाँ कहा गया है, किन्तु दिनेश को शेष तीनों शक्तियों का आधार तथा कारण बताया गया है -
ब्रह्मा विष्णुश्च भगवान् मार्तण्डो वृषवाहन:।*37
इमा विभूतय: प्रोक्ता चराचरसमन्विता।। (मत्स्यपुराण)
ब्रह्मादीनां परं धाम त्रयाणामपि संस्थिति:। *38
वेदमूर्तावत: पूषा पूजनीय: प्रयत्नत:।। (मत्स्यपुराण)
द्युस्थानीय देवों में परिगणित सूर्य ऐसे देवता हैं जिनका पौराणिक ग्रन्थों में दैवी एवं भौतिक दोनो ही स्वरूपों में वर्णन प्राप्त होता है। पद्मपुराण के अनुसार सूर्य चराचर जगत् का कारण तथा सर्वव्यापक हैं। समस्त प्राणियों को साक्षात् मूर्तरूप में भगवान भास्कर का दर्शन सम्भव है, जबकि अन्य देवों का साक्षात् मूर्त प्रत्यक्षीकरण सम्भव नहीं है।
त्वंच ब्रह्मा त्वं च विष्णु रूद्रस्त्वं च जगत्पते।*39
त्वमग्नि: सर्वभतेषु वायुस्त्वं च नमो नम:।। (पद्मपुराण)
सर्वग: सर्वभतेषु न हि किंचित् त्वया बिना। *40
चराचरे जगत्यस्मिन् सर्वदेहे व्यवस्थित:।। (पद्मपुराण)
इस प्रकार उपर्युक्त विविध पौराणिक ग्रन्थों से उद्धृत विभिन्न सन्दर्भों एवं साक्ष्यों का कहनानुशीलन एवं विश्लेषण करने के पश्चात् आदित्य, अर्यमा, अर्क, मार्तण्ड, सविता सवित्त, सुवर्णरेता, त्वष्टा, पूषा, मित्र, विवस्वान्, विभावसु, दिनेश्वर, दृगीश्वर, दिनकर, दिवाकर, द्वादशात्मा, नारायण, सत्वमूर्ति, कर्मसाक्षी आदि अभिधानों से अभिहित अज्ञानान्तधकारनाशक, ज्ञानप्रकाशप्रकाशक, सत्यपथप्रदर्शक, त्रयीमयात्मक, सहस्त्ररश्मि, योगी, रूद्रवपुष, भक्तवत्सल, पद्मनाभ, कुण्डलांगदभूषित, विधिविद्याधिष्ठित, विधिशास्त्रज्ञानालङ्कृत, सप्ताश्वसंयोजितरथारूढ़, दिवारात्रिभेत्ता, ऋतुविभाजनकत्र्ता, स्वास्थ्यप्रदाता, अविकारी, ज्योतिस्वरूप, जगतात्मा, जगत्चक्षु, विश्वचक्षु, विश्वतोमुख:, साक्षात् परब्रह्मस्वरूप, सर्वोत्कृष्ट शक्तिस्वरूप, अखिलाधारभूत आदि विशेषणों से विभूषित साक्षात् भौतिक एवं मूर्त रूप में प्रत्यक्षीकृत होने वाले द्युस्थानीय सूर्यदेव एवं सूर्यतत्त्व की दैविक एवं भौतिक दोनो ही रूपों प्रबल, प्रकृष्ट, महत्त्वपूर्ण, सार्वकालिक, सार्वदेशिक एवं सार्वभौमिक महत्ता, इयत्ता, गुणवत्ता, उपादेयता, शक्तिमत्ता, प्रभावसम्पन्नता एवं प्रतिष्ठा परिलक्षित एवं प्रमाणित होती है।
डॉ. सुनीता जायसवाल
विभागाध्यक्ष-संस्कृत
राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय
चकिया, चन्दौली (उ0प्र0)
सन्दर्भ सूची
1- मत्स्य पुराण - 52/24
2- मत्स्य पुराण - 78/6,7
3- महाभारत वनपर्व - 3/16
4- पद्मपुराण - 76/35
5- विष्णुपुराण - 3/11/39
6- ब्रह्मपुराण - 89/22
7- श्रीमद्भागवत्पुराण - 5/7/14
8- मत्स्य पुराण - 173/23
9- मत्स्य पुराण - 165/1
10- पद्मपुराण - 20/172
11- पद्मपुराण - 20/173
12- पद्मपुराण - 20/174
13- महाभारत शान्तिपर्व - 363/318/6-12
14- श्रीमद्भागवत्पुराण - 12/6/61-73
15- विष्णुपुराण - 3/5/1-21
16- विष्णुपुराण - 3/5/8
17- विष्णुपुराण - 3/5/27
18- विष्णुपुराण - 3/5/28
19- रामायण उत्तरकाण्ड - 36/14
20- रामायण उत्तरकाण्ड - 36/45
21- विष्णुपुराण - 3/5/15
22- भागवत् पुराण - 5/22/3
23- भागवत् पुराण - 5/21/15
24- भागवत् पुराण - 5/21/13
25- मत्स्य पुराण - 173/21
26- मत्स्य पुराण - 173/22
27- मत्स्य पुराण - 173/23
28- मत्स्य पुराण - 127/10
29- मत्स्य पुराण - 127/11
30- महाभारत वनपर्व - 3/15-72
31- महाभारत वनपर्व - 3/15
32- महाभारत वनपर्व - 3/16
33- विष्णुपुराण - 2/8/56
34- भागवत् पुराण - 5/20/46
35- ब्रह्म पुराण - 110/141
36- ब्रह्म पुराण - 110/142
37- मत्स्य पुराण - 52/21
38- मत्स्य पुराण - 52/24
39- पद्मपुराण सृष्टिखण्ड - 75/3
40- पद्मपुराण सृष्टिखण्ड - 75/20
हिन्दुस्तानी एकेडेमी में जन सूचना अधिकार का सम्मान
जनसूचना अधिकारी
श्री इंद्रजीत विश्वकर्मा,
कोषाध्यक्ष, हिन्दुस्तानी एकेडेमी,इलाहाबाद व मुख्य कोषाधिकारी, इलाहाबाद।
आवास-स्ट्रेची रोड, सिविल लाइन्स, इलाहाबाद
कार्यालय-१२ डी,कमलानेहरू मार्ग, इलाहाबाद
प्रथम अपीलीय अधिकारी
श्री प्रदीप कुमार्,
सचिव,हिन्दुस्तानी एकेडेमी, इलाहाबाद व अपर जिलाधिकारी(नगर्), इलाहाबाद।
आवास-कलेक्ट्रेट, इलाहाबाद
कार्यालय-१२डी, कमलानेहरू मार्ग, इलाहाबाद
दूरभाष कार्यालय - (०५३२)- २४०७६२५
मंगलवार, 4 नवंबर 2008
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छठ के दिन आज सूर्योदय देखा। साफ चटकदार। तनिक भी कोहरा - धुन्ध नहीं। मन प्रसन्न हो गया था।
जवाब देंहटाएंवही प्रसन्नता अब आपका यह लेख अवलोकन कर हो रही है।
हमारे यहां तो वेसे आज कल बादल ओर बर्फ़ ही होती है, लेकिन आज सुर्य देव साफ़ चमक रहे थै. ओर पुरी जानकारी आप के लेख से मिल गई.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
narayan narayan
जवाब देंहटाएंnarayan narayan
जवाब देंहटाएंShubhkaamnaon sahit swagat.
जवाब देंहटाएंब्लोगिंग जगत में आपका हार्दिक स्वागत है. लिखते रहिये. दूसरों को राह दिखाते रहिये. आगे बढ़ते रहिये, अपने साथ-साथ औरों को भी आगे बढाते रहिये. शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएं--
साथ ही आप मेरे ब्लोग्स पर सादर आमंत्रित हैं. धन्यवाद.
हिन्दी और उर्दू सेवा के लिए काफी अच्छा प्रयास कर रहे हैं।
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